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गठिया रोग का रामबाण इलाज - Arthritis Treatment of Arthritis


गठिया
गठिया के उपचार के लिए आजमायें आयुर्वेदिक चिकित्‍सा।आयुर्वेद के अनुसार यह समस्‍या आम-वात से जानी जाती है।आयुर्वेद में इसका उपचार योजनाबद्ध तरीके से किया जाता है।उपचार में एरंड के तेल के साथ दूध का सेवन है फायदेमंद है।

सामान्‍यतया गठिया रोग 50 साल से अधिक उम्र के लोगों को होता है, लेकिन वर्तमान में इसकी चपेट में युवा ही नहीं बच्‍चे भी आ रहे हैं। गठिया का रोग यानी आर्थराइटिस से शरीर के जोड़ो में दर्द और सूजन आ जाती है। गठिया रोग अचानक नहीं होता बल्कि धीरे-धीरे फैलता है इसलिए गठिया का सही उपचार जरूरी है।

जरूरी नहीं है कि आप गठिया के उपचार के लिए एलोपैथ की शरण में ही जायें, इसके लिए आप आयुर्वेद का सहारा ले सकते हैं। आयर्वेद के जरिये गठिया के सभी प्रकारों जैसे - रूमेटायड आर्थराइटिस, ऑस्टियो आर्थराइटिस, गाउट, जुवेनाइल आर्थराइटिस और ऐंकलूजिंग स्पोंडीलोसिस आदि का उपचार आसानी से कर सकते हैं। इस लेख में विस्‍तार से जानिये आयुर्वेद के जरिये गठिया का कैसे कर सकते हैं उपचार।

                    *आयुर्वेद और गठिया*

आमतौर पर गठिया होने का प्रमुख कारण आनुवांशिक होता है, लेकिन कई बार किसी भयंकर बीमारी या संक्रमित रोग के कारण भी गठिया रोग हो जाता है। आर्थराइटिस को आयुर्वेद में आम-वात के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार गठिया होने के कारकों में खराब पाचन, खानपान की गलत आदतें और निष्क्रिय जीवनशैली के साथ ही वात दोष को माना गया है।

                          *दिनचर्या*

गठिया में सिर्फ आयुर्वेदिक औषधियां ही नहीं बल्कि अच्छी खुराक लेने की सलाह भी देनी चाहिए। दरअसल, आयुर्वेद के इलाज के दौरान, गठिया के मूल कारणों को खोजने और फिर उसका सही रूप में उपचार करने पर अधिक ध्यान दिया जाता है। यदि किसी व्यक्ति में गठिया रोग वात बिगड़ने और दोषपूर्ण पाचन की वजह से हुआ है तो आयुर्वेद में उसके इलाज स्वरूप रोगी की असंतुलित शारीरिक ऊर्जाओं को शांत करने और पाचन क्षमता बेहतर करने पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है।

                  *आयुर्वेदिक उपचार*

आयुर्वेद के अनुसार गठिया के उपचार में जितनी जरूरी इसकी चिकित्सा है, उससे कहीं अधिक जरूरी परहेज भी है। रोगी के लिए विशेष प्रकार के व्यायाम कराए जाते हैं और सप्ताह में एक से दो बार सोने के पहले 25 मिलीलीटर एरंड के तेल का दूध के साथ सेवन कराते हैं। इसके अलावा लक्षणों व रोग की गंभीरता के आधार पर उपचार किया जाता है। उपचार के दौरान रोगी को दर्द कम करने के लिए एंटी-रुमे‍टिक और एंटी-इंफ्लेमेट्री दवाएं दी जाती हैं साथ ही भरपूर आराम करने की सलाह दी जाती है।

                         *खानपान*
आयुर्वेद के अनुसार मरीजों के लिए खानपान पर विशेष ध्‍यान देना चाहिए। अधिक तेल व मिर्च वाले भोजन से परहेज रखें और डाइट में प्रोटीन की अधिकता वाली चीजें न लें। भोजन में बथुआ, मेथी, सरसों का साग, पालक, हरी सब्जियां, मूंग, मसूर, परवल, तोरई, लौकी, अंगूर, अनार, पपीता, आदि का सेवन करें। इसके अलावा नियमित रूप से लहसुन व अदरक आदि का सेवन भी इसके उपचार में फायदेमंद है।

अर्थराइटिस के इलाज के लिए इम्यून सिस्टम का मजबूत होना बेहद आवश्यक है, साथ ही पाचन तंत्र का भी बेहतर होना जरूरी है। इसलिए नियमित व्‍यायाम के साथ खानपान का विशेष ध्‍यान रखें।

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